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उ॒त त्वा॒ स्त्री शशी॑यसी पुं॒सो भ॑वति॒ वस्य॑सी। अदे॑वत्रादरा॒धसः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tvā strī śaśīyasī puṁso bhavati vasyasī | adevatrād arādhasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्वा॒। स्त्री। शशी॑यसी। पुं॒सः। भ॒व॒ति॒। वस्य॑सी। अदे॑वऽत्रात्। अ॒रा॒धसः॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री के पुरुषार्थ उपदेश को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुष ! जो (स्त्री) स्त्री (अदेवत्रात्) विद्वानों की रक्षा करता है जिससे उससे विरुद्ध (अराधसः) धनविरुद्ध पदार्थ से पृथक् होकर (पुंसः) पुरुष की (वस्यसी) अत्यन्त धनवाली (उत) और (शशीयसी) अत्यन्त दुःख को दूर करनेवाली (भवति) होती और (त्वा) आपको सुखी करती है, उसको आप सुखयुक्त करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - वही स्त्री पति से आदर करने योग्य होती है जो अन्यायाचरण और नहीं आदर करने योग्य के आदर करने से रहित हुई पति को सुखी करती है, वही पति से निरन्तर आदर करने योग्य होती है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीपुरुषार्थोपदेशमाह ॥

अन्वय:

हे पुरुष ! या स्त्री अदेवत्रादराधसः पृथग्भूत्वा पुंसो वस्यस्युत शशीयसी भवति त्वा सुखयति तां त्वं सुखय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्वा) त्वाम् (स्त्री) (शशीयसी) अतिशयेन दुखं प्लावयन्ती (पुंसः) पुरुषस्य (भवति) (वस्यसी) अतिशयेन वसुमती (अदेवत्रात्) देवान् त्रायते यस्मात्तद्विरुद्धात् (अराधसः) अधनात् ॥६॥
भावार्थभाषाः - सैव स्त्री पत्या माननीया भवति याऽन्यायाचरणादपूज्यपूजनाद्विरहा सती पतिं सुखयति सैव पत्या सततं सत्कर्त्तव्यास्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी अन्यायाचरण करीत नाही व अयोग्य माणसांचा आदर करत नाही. पतीला सुखी करते ती पतीकडून सत्कार व आदर प्राप्त करण्यायोग्य असते. ॥ ६ ॥